कहानी श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की

कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ से यदि कोई सच्चे मन से कुछ मांगता है तो उसे वह अवश्य मिलता है। सभी देवताओं में केवल भगवान शिव ही एक ऐसे देवता है जो जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं बस आवश्यकता है तो केवल श्रद्धाभाव की।

आज आपको इस ब्लॉग में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी के बारे में बताएंगे तो बिना देर किए चलिए चलते हैं सीधा मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में जहां स्थित है हमारे प्रभु भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग। इस ज्योतिर्लिंग के उद्भव की कहानी भी अद्भुत है कहते हैं कि इस शहर में एक चारों वेदों का प्रकांड विद्वान ब्राह्मण रहता था उसका नाम वेदप्रिय था। भगवान शिव में उसकी अगाध श्रद्धा थी। भोलेनाथ के आशीर्वाद से उसे चार बेटे हुए जिनके नाम देवप्रिय ,संस्कृत,प्रियमेधा और सुव्रत था।उस समय राक्षसों का आतंक संपूर्ण धरती पर था। राक्षस ब्राह्मणों के यज्ञ कर्म में विघ्न डालते ऋषि मुनियों को सताते यहाँ तक की उन्हें जान से मार डालते थे। उज्जैन में भी एक ऐसा ही राक्षस था जिसका नाम दुुशण था। ब्रह्मा के वरदान के कारण उसे युद्ध में कोई नहीं हरा सकता था उसकी विजय सदैव निश्चित होती थी। इस वरदान के मद में चूर होकर उसने चारों तरफ त्राहि त्राहि मचा रखी थी। सभी लोग उसके आतंक से भयभीत थे। तब ब्राह्मण के बेटों ने उज्जैन को इस त्राहिमाम से बचाने के लिए भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी उन्होंने उज्जैनवासियों से भी भगवान शिव की आराधना करने को कहा । पूजा-अर्चना के दौरान वह राक्षस अचानक से वहां आ गया उसने जैसे ही ब्राह्मण के बेटों की हत्त्या करने के लिए अपने अस्त्र उठाये धरती के गर्भ में से भगवान शिव प्रकट हुए उन्होंने तत्काल ही दुुशण का अंत कर उज्जैन वासियों को सदैव के लिए भय मुक्त कर दिया।

भगवान शिव ने उन चारों ब्राह्मणों की आराधना से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा चारों बेटों ने उन्हें धरती कल्याण के लिए वहीं रुक जाने के लिए विनती की। तब वे वहां सदा सदा के लिए एक ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए जिसको हम और आप आज महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं।

महत्वपूर्ण घटनाएं/मुख्य बिंदु

  1. उज्जैन को उज्जैनी और अवंती नाम से भी जाना जाता है। यह विश्व के पुराने शहरों में से एक है जो लगभग 4000 साल पुराना है।
  2. सन 1235 ईस्वी में इल्तुतमिश ने प्राचीन मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। शमसुद्दीन इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत में शमशी राज्य का शासक था।
  3. आखरी बार 18 वी शताब्दी में मराठा काल में रावत जी शिंधे ने इस मंदिर का नवीकरण कराया।
  4. यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिण मुखी है। दक्षिण मुखी होने के कारण तांत्रिक परंपराओं में इसका बेहद ही खास महत्व है यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां तांत्रिक पूजा होती है।
  5. रोज सुबह 4:00 बजे भगवान शिव का भस्म से श्रृंगार किया जाता है ।यह भस्म किसी हवन कुंड की नहीं होती बल्कि जलती चिता की होती है। श्रृंगार के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है।इस आरती में सम्मिलित होने के लिए महिलाओं के लिए साड़ी और पुरुषों के लिए धोती अनिवार्य है।
  1. पूरा मंदिर 3 फ्लोर में बंटा हुआ है सबसे नीचे महाकालेश्वर स्वयं विराजमान है। इसके बाद पहले फ्लोर पर ओंकारेश्वर का मंदिर है तथा दूसरे फ्लोर पर श्री नागचंद्रेश्वर का मंदिर है इस मंदिर की खासियत यह है कि केवल साल में एक बार ही खोला जाता है नाग पंचमी के दिन।
  2. .प्रत्येक 12 वर्ष बाद उज्जैन में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है जहां सैकड़ो साधु ,ऋषि,नागासाधु देश विदेश से पहुंचते हैं। यह कुंभ मेला एक माह तक चलता है। शिप्रा नदी में सभी साधु स्नान कर भोलेनाथ के दर्शन के लिए रवाना होते हैं।
  3. उज्जैन में 9 दिन पहले से ही महाशिवरात्रि की धुन सुनाई देती है। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ का विवाह हुआ था।इस दिन उज्जैन में किसी के भी घर चूल्हा नहीं जलता है सभी के लिए भोजन की व्यवस्था मंदिर में की जाती हैं। तो यह थी कहानी श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की


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