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नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में हम सप्त चक्रो में से एक स्वादिष्ठान चक्र के बारे में बात करेंगे। यह चक्र हमारे सप्त चक्रो में द्वितीय स्थान रखता है जो कि मनुष्य की नाभि में स्थित रहता है। यदि कोई व्यक्ति इस चक्र को जागृत कर ले तो वह अपने मानसिक तनाव अपनी क्रूरता घमंड और आलस जैसे कई अन्य बुरी आदतों से मुक्त हो सकता है।यदि मनुष्य अपनी दिनचर्या को नियमबद्ध करें और अपने खान-पान पर ध्यान दे तो वह इस चक्र की शक्तियों को जागृत कर सकता है। स्वादिष्ठान चक्र संजीवनी जल का प्रतीक माना जाता है जो कि हमारी अंतरात्मा के कई रहस्यमई और रोमांचक अनुभवों से हमारा सामना करता है। हमारे पुराणों में अमृत मंथन की कहानी का जिक्र है जिसमें देवताओं ने भगवान श्री विष्णु की सहायता से अमृत पान किया था जो कि उनकी उदारता और रचनात्मक शक्ति को प्रदर्शित करता है।
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चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति स्वतंत्रता से जुड़ी कई संभावनाओं को देखने लगता है। बात हो रही थी सृजनात्मक शक्ति की तो हमारे पुराणों में और वेदों में भरपूर देखने को मिलती है जहां ऋषियों ने अपनी तप शक्ति और सृजनात्मक शक्ति की सहायता से कई मंत्रों और विचारों का सृजन किया है। वेदों में मिलने वाला हर मंत्र हर शब्द मनुष्य को कुछ नया सीखता है और उसे बेहतर सोचने के लिए भी प्रेरित करता है।
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वास्तव में इस चक्र के प्रभाव से व्यक्ति संवेदनशील हो जाता है और संवेदनशीलता ही व्यक्ति को भाव विचारों को समझने में सहायता करती है जीवन को सुंदर और सहज बनाने का कार्य करती है। यदि एक बार इसका प्रभाव मनुष्य महसूस करने लगे तो उसका जीवन एक नई दिशा ले लेता है।
आशा करता हूं हमारा यह लेख आपको पसंद आया होगा अगर इस लेख में त्रुटि हो गई हो तो उसके लिए हम क्षमा प्रार्थी है। आप अपने सजेशन कमेंट्स बॉक्स में हमें देते रहिए आपके सजेशन हमारी टीम के लिए दिशा निर्देश का कार्य करेंगे और हमें बेहतर कार्य करने के लिए भी प्रेरित करेंगे। तो इसी के साथ हम आपसे विदा लेते हैं और मिलते हैं एक नए लेख के साथ।
#Spirituality
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