नमस्कार दोस्तों क्या आप मूलाधार चक्र के बारे में जानते हैं?यदि नहीं तो आज का यह लेख आप ही के लिए है। बिना देर किए सीधा चलते हैं अपने विषय के ऊपर
हमारे पुराणों में जिक्र है कि भगवान शिव ने इस संपूर्ण पृथ्वी की रचना अपने बालों से की है उन्ही जटाओं के तेज से उनकी ध्यान शक्ति के फल स्वरुप मूलाधार चक्र का उद्भव हुआ है। यह चक्र हमारी आत्मा का संबंध धरती माता से कराता है। इस मूलाधार चक्र का वर्णन एक और कहानी में मिलता है जो कि भगवान श्री गणेश से जुड़ी हुई है जो कि उनकी पहचान उनकी स्थिरता से करवाता है। मूलाधार चक्र का नाम अपने आप में अनोखा है मूल अर्थात आधार। यह चक्र हमारी धार्मिक मान्यताओं में स्थिति और सुरक्षा के भाव को दर्शाता है। हिंदू तांत्रिक संदर्भ में मूलाधार सप्त चक्रो में पहला चक्र है जो कि पृथ्वी के मूल में स्थित है। कहते हैं जो व्यक्ति इस चक्र की शक्तियों को जागृत कर लेता है वह अपने आप में एक अलग स्थिरता और मूलभूत आत्मविश्वास का अनुभव करता है।
यह चक्र केवल शारीरिक और आत्मिक सुरक्षा ही नहीं प्रदान करता अपितु यह यौन संबंधों में भी विशेष महत्व रखता है। इस चक्र के जागरण से व्यक्ति में सामंजस्य की भावना आने लगती है उसका धार्मिक और आध्यात्मिक विकास होता है। इसके जागरण करने के उपायो में योग- अभ्यास और कठिन अनुशासन आता है। विशेष नियमों का पालन और ध्यान साधना को करके इस चक्र को जागृत किया जाता है।भगवान श्री कृष्ण भी भागवत गीता में अर्जुन को उपदेश देते हैं की स्थिरता से व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अनुकूल परिणाम प्राप्त कर सकता है।
भगवान श्री कृष्ण प्रत्येक परिस्थिति में अर्जुन को स्थिर रहने का उपदेश देते हैं यह उपदेश हमें भी अपने जीवन में लागू करना चाहिए। चक्र को जागृत करना अपने आप में एक अलग आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसके फल स्वरुप हम अपने आप को अपनी अंतर आत्मा से जोड़े रख पाने में सक्षम होते हैं। यदि कोई व्यक्ति मानसिक तनाव से ग्रस्त है तो उसे किसी अभ्यासी और दक्षता प्राप्त गुरु की शरण लेनी चाहिए जो उसके मूलाधार चक्र को जागृत करके उसके तनावों से उसे मुक्त कर सके। चक्र के जागरण के प्रभाव से व्यक्ति विषम से विषम परिस्थितियों में भी स्थिर रह सकता है।
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