कहानी अद्भुत ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ की

दोस्तों क्या आप भगवान शिव के वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के स्थापित होने की कहानी जानते हैं यदि नहीं तो आज का यह ब्लॉग आप ही के लिए है तो बिना देर किए चलते हैं सीधा झारखंड के धार्मिक शहर देवघर की ओर जहां स्थापित है यह अद्भुत ज्योतिर्लिंग। इस ज्योतिर्लिंग के स्थापना की कहानी जुड़ी हुई है लंकापति रावण से। रावण भगवान शिव का परम भक्त था। प्रसिद्ध शिव तांडव स्तोत्रम भी रावण द्वारा ही रचित है। कहते हैं कि एक बार लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर घोर तप किया किंतु वह भगवान शिव को प्रसन्न न कर सका जब भगवान ने उसे दर्शन न दिए तब वह एक एक करके अपने शीश को काटकर आहुति के तौर पर हवन कुंड में डालता गया। यह करते करते उसने अपने 9 शीश काट दिए। जब वह अपना दसवा शीश काटने ही वाला था तभी भगवान शिव ने उसके इस भक्ति भाव और बलिदान से प्रसन्न होकर दर्शन दिए और उसके सभी दशो सिरों को लौटा दिया। भगवान ने उसे वरदान मांगने को कहा रावण ने अपनी इच्छा जाहिर की प्रभु आप कामना लिंग के रूप में मेरे साथ लंका चले ताकि मैं वहां आपके शिवलिंग को स्थापित कर सकूं। उसके भगवान को कामना लिंग के रूप में ले जाने का उद्देश्य था कि वह सदा सदा के लिए अजय बन जाए।

रावण के इस अनुरोध पर भगवान शिव चलने को तैयार तो हो गए किंतु उन्होंने अपनी एक शर्त रखी कि वह जहां कहीं भी शिवलिंग को रख देगा यह शिवलिंग वहीं स्थापित हो जाएगा और तुम्हारे उठाने पर भी नहीं उठेगा। रावण ने भगवान की यह शर्त मानकर र हिमालय से प्रस्थान किया।

लंका की ओर जाते वक्त रावण झारखंड के देवघर शहर से गुजर ही रहा था इसी बीच उसे अचानक लघु संका आई। रावण को पता था यदि उसने ज्योतिर्लिंग धरती पर रख दिया तो वह वहीं स्थापित हो जाएगा। तभी उसने देखा कि एक ग्वाला सामने से आ रहा था जिसका नाम बैजू था।रावण ने ग्वाले से कहा कि तुम इस शिवलिंग को कुछ देर के लिए पकड़ लो वह कुछ देर में अभी आता है। उसने ग्वाले से कहा किंतु यह शिवलिंग धरती पर मत रखना। बैजू ने रावण की बात मान ली किंतु शिवलिंग में अत्यधिक भार होने के कारण बैजू उसे अत्यधिक देर तक उठा ना सका और उसने शिवलिंग धरती पर रख दिया।

जब तक रावण वहां आया तब उसने पाया कि शिवलिंग जमीन पर है उसने शिवलिंग को उठाने की बहुत कोशिश की किंतु वह सफल न हो सका। थक हार कर वह लंका लौट गया। बाद में भगवान विष्णु,ब्रह्मदेव और कई देवताओं समेत उस शिवलिंग की पूजा अर्चना विधि विधान से करके प्रतिस्थापना की गई चूंकि बैजू द्वारा धरती पर शिवलिंग रखा गया था इस कारण इसे वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना गया।

यह एकमात्र ऐसा सिद्ध पीठ है जहां शिव और शक्ति दोनों विराजमान है। इस ज्योतिर्लिंग के कुछ ही दूरी पर मां सती के 51 शक्ति पीठों में से एक पीठ यहां मौजूद है ।कहा जाता है मां सती का हृदय इस स्थान पर गिरा था।इस स्थान को हृदयपीठ के रूप में जानते हैं मां शक्ति को यहां जयदुर्गा के रूप में पूजा जाता है।


भगवान भोलेनाथ के इस मंदिर में सावन के महीने में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। देश विदेश से हजारों लाखों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। सुल्तानगंज से पवित्र गंगा जल लेकर वह 100 किमी तक पैदल चलकर बैजनाथ धाम पहुंचते हैं।

मुख्य घटनाएं/महत्वपूर्ण बिंदु

  1. मंदिर का परिसर बहुत बड़ा है यहां 22 मंदिर है।
  2. मुख्य मंदिर लगभग 72 फीट ऊंचा है।
  3. गर्भ गृह में भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग विराजमान है जहां भक्तों द्वारा रुद्र अभिषेक ,जल अभिषेक किया जाता है।
  4. मुख्य मंदिर के पास ही मां पार्वती का एक मंदिर है। दोनो मंदिरों के शिखर को कलावे से बांध कर रखा जाता है। जिसे शिव शक्ति का गठजोड़ भी कहते हैं। यदि कोई नया शादी शुदा जोड़ा है तो उसे यहां कलावा बांधने जाना चाहिए जिस प्रकार भगवान शिव और माता पार्वती का अटूट बंधन है उसी प्रकार कलावा बांधने से शादीशुदा जोड़े का बंधनअटूट और पवित्र हो जाता है।
  5. मंदिर के पट अपने भक्तों के लिए सुबह 4:00 बजे खोल दिए जाते हैं।
  6. सुबह 4:00 से 5:30 बजे तक भगवान शिव की विधि विधान से पूजा की जाती है। पट 3:00 बजे तक अपने भक्तों के दर्शन के लिए खुले रहते हैं।
  7. भगवान के ज्योतिर्लिंग का शाम को विशेष श्रृंगार किया जाता है।
  8. रात 9:00 बजे आरती के बाद मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं।
  9. यहा प्रसाद के रूप में भगवान को पेड़े चढ़ाए जाते हैं।
  10. भगवान भोलेनाथ का यह एकमात्र ज्योर्तिलिंग है जहां शिखर पर त्रिशूल नहीं पंचसूल लगा हुआ है।
  11. यह पंचसूल पांच तत्वों का प्रतीक माना जाता है जो इस प्रकार है आकाश,धरती,वायु,जल, अग्नि।
  12. लोगों का विश्वास है कि पंचशूल के कारण ही यह मंदिर हजारों सालों से आज तक सुरक्षित है। इसको मंदिर का सुरक्षा कवच माना जाता है।
  13. शिवरात्रि के दो दिन पहले इस पंचसूल को शिखर से भक्तो के दर्शन के लिए उतारा जाता है। शिवरात्रि के दिन पूजा अर्चना के बाद पंचसूल को पुनः शिखर पर लगा दिया जाता है। इसको उतारने और लगाने का अधिकार पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानीय परिवार को है।
  14. कहते हैं कि जिन लोगों की शादी नहीं हो रही है या जिनके बच्चे नहीं हो पा रहे वह यदि सच्चे मन से भगवान शिव के इस दिव्य ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करें विधि विधान से पूजा अर्चना करें तो उन्हें फल की प्राप्ति जरूर होती हैं।
    तो यह थी बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी।

आशा करता हूं हमारा यह ब्लॉग आपको पसंद आया होगा अगर इस ब्लॉग में त्रुटि हो गई हो तो उसके लिए हम क्षमा प्रार्थी है। आप अपने सजेशन कमेंट्स बॉक्स में हमें देते रहिए आपके सजेशन हमारी टीम के लिए दिशा निर्देश का कार्य करेंगे और हमें बेहतर कार्य करने के लिए भी प्रेरित करेंगे। तो इसी के साथ हम आपसे विदा लेते हैं और मिलते हैं एक नए ब्लॉग मैं।

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