श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग जिनके दर्शन मात्र से सारे कष्ट मिट जाते हैं हमारे बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। हर साल हजारों भक्तगण मीलों दूर से इनके दर्शन के लिए आते हैं।
आज के इस ब्लॉग में हम सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के उद्भव से जुड़ा रोचक किस्सा आपको बतायेंगे तो देर किस बात की बने रहिएगा हमारे साथ इस ब्लॉग के अंत तक।
भगवान शिव का यह अद्भुत ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र जिले में स्थित है। कहते हैं की प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियां थी। उन्होंने अपनी सभी पुत्रियों का विवाह चंद्रमा के साथ कर दिया था। चंद्रमा अपनी सभी पत्नियों से प्रेम करता था किंतु अथाह प्रेम वह केवल रोहिणी से करता था। सभी पत्नियाँ उनके इस व्यवहार से नाराज थी। वह सभी अपनी समस्या के समाधान हेतु अपने पिता प्रजापति दक्ष के यहां पहुंचती है। प्रजापति दक्ष यह बात सुनकर अत्यंत क्रोधित होते हैं और चंद्रमा को बुलाकर उसे समझाने का प्रयास करते हैं किंतु चंद्रमा को रोहिणी के आगे कुछ सूज ही नहीं रहा था। इस पर अत्यंत क्रोधी प्रजापति दक्ष ने चंद्रमा को छय होने का श्राप दे दिया और कहा की जा तुझे जिस सुंदरता पर घमंड है वह हर दिन तुझसे दूर होती जाएगी।
दक्ष द्वारा दिया गया यह श्राप कुछ समय बाद सच होने लगा था। धरती पर चारों ओर अंधकार छाने लगा चंद्रमा का आकार दिनों प्रतिदिन घट रहा था। इस भयावह श्राप के उपाय हेतु वे ब्रह्मा जी के पास गए ब्रह्मा जी ने उन्हें देवाधिदेव महादेव के पास जाने के लिए कहा। महादेव की कृपा पाने के लिए चंद्रमा ने एक शिवलिंग का निर्माण किया और उसके समक्ष घोर आराधना की। उनकी इस आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और चंद्रमा को अक्षय दान देेकर बोले की हे! चंद्र कृष्ण पक्ष के दौरान तुम्हारा आकर निरंतर घटता जाएगा किंतु शुक्ल पक्ष के दौरान तुम अपने आकार को धीरे धीरे पुनः पालोगे और अपने पूर्ण तेज के साथ इस संसार को जगमय करोगे। भगवान शिव के इस अक्षय दान से चंद्रमा को जीवनदान भी मिला और प्रजापति दक्ष के श्राप का भी सम्मान हुआ। बाद में चंद्रमा ने भगवान शिव और माता पार्वती से प्रार्थना की वे इस ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव यहां निवास करें और मेरी तरह अपने अनेकों भक्तों को उनके कष्टों से मुक्ति दिलाकर उन्हे कृतार्थ करें। चंद्रमा के इस निवेदन से शिव ने ज्योतिर्लिंग के रूप में उस स्थान को अपना निवास स्थान बनाया। चूंकि चंद्रमा का एक नाम सोम है और भगवान शिव को उन्होंने अपना नाथ माना था इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ पड़ा। इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन हमारे धार्मिक ग्रंथो शिव पुराण, श्रीमद् भागवत पुराण ,स्कंद पुराण और महाभारत में मिलता है जिससे समझ आता है कि यह ज्योतिर्लिंग अत्यंत ही प्राचीन है।
चारों वेदों में केवल ऋग्वेद में ही इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन मिलता है। कहते हैं की चंद्रमा ने स्वयं इस मंदिर का निर्माण सोने से करवाया था।
मुख्य घटनाएं/मुख्य बिन्दु
- सातवीं शताब्दी में पल्लवी के मैत्रक् राजाओं ने इस मंदिर का पुनः निर्माण कराया किंतु आठवीं शताब्दी में सोमनाथ के इस मंदिर ने तबाही का आलम झेला।
- एक बार अरबी गवर्नर जुनायद ने अपनी पूरी सेना को इस मंदिर को तोड़ने के लिए भेजा था। इसका जिक्र अरब यात्री अलबरूनी ने अपनी भारत यात्रा के दौरान लिखे यात्रा वर्णन के प्रसंगो में किया है।
3.सेंट्रल अफगानिस्तान के गजनवी राजवंश के एक क्रूर शासक महमूद गजनवी ने अपनी 5000 की सेना लेकर सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण किया और मंदिर में रखी हुई अथाह धन दौलत को लूटकर अफगानिस्तान ले गया। वह जाते समय मंदिर के दरवाजे भी अपने साथ ले गया था। जिस समय वह मंदिर लूटने आया था उस समय हजारों भक्त मंदिर में मौजूद थे। उसने उन सभी को मौत के घाट उतार दिया था। गजनी को पूर्वी ईरान लैंड्स के विस्तार के लिए जाना जाता है।
- गजनी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया था।
बाद में गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने मन्दिर का पुनः निर्माण कराया।
- 1297 ईसवी में दिल्ली सल्तनत पर अलाउद्दीन खिलजी का शासन था। उसके शासनकाल में मुगलों ने सोमनाथ पर आक्रमण किया। अलाउद्दीन ने उस समय पूरे गुजरात को अपने कब्जे में कर लिया था।
पांचवीं बार सोमनाथ के मंदिर को गिराया गया था - 1706 ईसवी में पुनः औरंगजेब ने मंदिर पर हमला किया था।
- 1 मई 1950 इसवी को सौराष्ट्र के राजा दिग्विजय सिंह ने पुनः मंदिर की नींव रखी।
- 11 मई 1951 ईसवी को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की। 1962 में यह मंदिर पूरा बनकर तैयार हुआ और इसका श्रेय लोह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को दिया जाता है।
- यह मंदिर तीन भागों में विभक्त है1.गर्भ ग्रह 2.सभा मंडप 3.नृत्य मंडप
- इस मंदिर में शाम को 1 घंटे लाइट शो किया जाता है। जिसमें मंदिर के निर्माण इतिहास को बहुत ही अद्भुत तरीके से दर्शाया जाता है
- सोमनाथ में ही हमें त्रिवेणी संगम के दर्शन भी होते हैं ।जहाँ सरस्वती ,हिरण और कपिला नदी का महासंगम होता है। इस संगम में भक्त जन अपने शरीर को शुद्ध कर सोमनाथ के दर्शन के लिए आगे बढ़ते हैं। कहते हैं की त्रिवेणी में स्नान करने से आपको सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
- सोमनाथ में ही एक बहेलिये ने भगवान् श्री कृष्ण के पैरो में तीर मारा था। इस स्थान को प्रभास तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है।
तो यह थी कहानी श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की जिसके दर्शन मात्र से सारे कष्टों का हरण हो जाता है और जीवन मंगलमय हो जाता है।
आशा करता हूं हमारा यह ब्लॉग आपको पसंद आया होगा अगर इस ब्लॉग में त्रुटि हो गई हो तो उसके लिए हम क्षमा प्रार्थी है। आप अपने सजेशन कमेंट्स बॉक्स में हमें देते रहिए आपके सजेशन हमारी टीम के लिए दिशा निर्देश का कार्य करेंगे और हमें बेहतर कार्य करने के लिए भी प्रेरित करेंगे। तो इसी के साथ हम आपसे विदा लेते हैं मिलते हैं एक नए ब्लॉग मैं।
#Mythology
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